जीवन

क्या करें जब धैर्य की परीक्षा हो ?

Test of patience

रिश्तों में कई बार ऐसे मोड आते हैं जब जिंदगी इम्तिहान लेती है और इन विपरीत परिस्थितियों मे आप कैसी प्रतिक्रिया देते है, कैसा भावनातमक संतुलन रखते है और कैसे आपसी रिश्तो को सहज बनाये रखते है इन सब पर आपकी असली परख होती है । परिस्थितियां अनुकूल हैं तो संबंध सहज रहते हैं और जीवन अपनी गति से चलता है लेकिन जब व्यवस्थित जीवन में एकाएक अनचाहा मोड आ जाए तो कुछ पल के लिए जीवन थम सा जाता है। कुछ लोग धैर्य का परिचय देते हुए इस मोड से गुजर जाते हैं, मगर कुछ का संतुलन डगमगाने लगता है।

जब ऐसी स्थिति सामने आए तो क्या करें ? यहाँ हम कुछ ऐसी ही स्थितियों के बारे में बता रहेँ है…….

1. जब आपकी नौकरी ना रहे :
प्रभाव : असुरक्षा की भावना, मनोबल का गिर जाना , पैसे की कमी,खालीपन का एहसास, सामाजिक उपेक्षा और पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वाह की चिंता।
सलाह : जब कभी ऐसी स्थिति आन पड़े तो इसे आप एक रुटीन ब्रेक की तरह ले इस स्थिति में अपनी फाइनेंसियल जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे पहले आप माता-पिता से भी मदद लेने के बारे में सोच सकते हैं। यदि पति पत्नी दोनों वर्किंग है तो पूरे परिवार को एकजुट करें, जिसमें बच्चे भी शामिल हों और सोचें कि एक की तनख्वाह कम आने से घर के बजट पर कहां-कहां प्रभाव पडेगा । घर खर्च में थोड़ी सी कटौती करें जैसे की घरेलू हेल्पर को कुछ दिनों के लिए हटाये, बाहर रेस्टोरेंट मे जाना कम करे। अगर सोच सकारात्मक हो तो हर कार्य किया जा सकता है, थोडी तकलीफ होती है पर धीरे-धीरे जीवन सामान्य हो जाता है।

2.जब दूसरे शहर में हो तबादला :
प्रभाव : नई जगह और स्थितियों में सामंजस्य बिठाने की चिंता, थकान, बेचैनी, बच्चों के स्कूल-कॉलेज की चिंता, पारिवारिक व्यवस्था का अस्तव्यस्त होना।
सलाह : नई स्थितियां, नया मौका, नया परिवेश और नया माहौल कुछ लोग कंफर्ट जोन के दायरे के हटने पर परेशान और चिंतित होते हैं, कुछ इसे चुनौती मान कर इसका सामना करते हैं । नई स्थितियों को लेकर चिंता स्वाभाविक है, लेकिन नए शहर में जाने पर नया माहौल मिलता है और नए रिश्ते बनते हैं। दूसरे शहर में जाने से पहले उसके बारे में सभी जरूरी जानकारियां ले लें। जिस तरह आप किसी यात्रा पर जाने से पहले उस जगह के बारे में तमाम जानकारियां हासिल करते हैं उसी तरह दूसरे शहर में जाने से पहले भी वहां की जलवायु, लोगों, भाषा और संस्कृति के बारे में जानकारी एकत्र करें।
अपने आप को मानसिक तौर पर इसके लिए तैयार रखें कि वहां की भाषा सीखनी है, लोगों से मेलजोल बढाना है, वहां की लाइफस्टाइल के बारे में जानकारी हासिल करनी है। इस योजना के साथ दूसरे शहर या देश में जाएंगे तो मुश्किल नहीं होगी या काफी काम होगी।

3. जब सास-ससुर साथ रहने आएं :
प्रभाव : जिम्मेदारी बढना, एडजस्टमेंट की चिंता, आजादी में बाधा महसूस करना, प्राइवेसी खत्म होने का डर इत्यादि ।
सलाह : सबसे पहली चीज है एडजस्टमेंट। बुजुर्ग माता-पिता साथ रहने आए हैं तो उन्हें उनका स्पेस दें और खुद के लिए भी स्पेस लें। आप शुरू में ही जो व्यवस्था बनाएंगे, वही हमेशा लागू रहेगी। हर जिम्मेदारी शुरू में थोडी तकलीफदेह महसूस होती है, धीरे-धीरे इसकी आदत पड जाती है। पति-पत्नी मिल कर विचार-विमर्श करें कि माता-पिता के आने से जो जिम्मेदारियां बढेंगी, उनका निर्वाह दोनों कैसे करेंगे। घरेलू काम बांटें और किसी भी तरह का दिखावा न करें।
अगर माता-पिता परंपरागत सोच वाले हैं और बहू नौकरीपेशा तो कई बार पहनावे और रहन-सहन को लेकर नोकझोंक होने लगती है, ऐसे में स्पष्ट करें कि माता-पिता के प्रति आपके मन में पूरा सम्मान है, लेकिन आधुनिक पहनावा सुविधा और समय बचाने के लिहाज से सही है। अपनी हिचक कम करें, माता-पिता का पूरा ख्याल रखें एवं कुछ प्रॉब्लम्स को नजरअंदाज करना सीखें ताकि वे भी आपकी आजादी का सम्मान करें।

4. जब बुजुर्ग हो बीमार :
प्रभाव : अत्यधिक खर्च, करियर पर ध्यान न दे पाना, थकान, चिंता, दबाव और और तनाव में जिंदगी जीना।
सलाह : यह एक ऐसी परेशानी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हर व्यक्ति एक दिन वृद्ध होता है और वृद्धावस्था के साथ कई बीमारियां भी घेरती हैं। जिम्मेदारी है तो निभानी ही होगी, बुजुर्गो के साथ सेहत संबंधी समस्याएं लगी रहती हैं ऐसी स्थिति में अपने दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है। एक टाइम-टेबल बनाएं और घर के हर सदस्य की जिम्मेदारी तय करें और जरूरत पडने पर रिश्तेदारों-संबंधियों की भी मदद लें। इसमें काफी पैसे, समय, ऊर्जा और श्रम की खपत होगी, लेकिन भारतीय संस्कार कई परेशानी से उबारते भी हैं, जिनमें बुजुर्गो की सेवा को परम धर्म माना गया है शायद इसलिए कि हम भी कभी बुजुर्ग होंगे।

About the author

RML Editorial Team