सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार सुबह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए सूचना प्रौद्योगिकी क़ानून (आईटी एक्ट) के अनुच्छेद 66A को असंवैधानिक क़रार दिया है |
अनुच्छेद 66A के तहत दूसरे को आपत्तिजनक लगने वाली कोई भी जानकारी कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन से भेजना दंडनीय अपराध था |
सरकार ने इस अनुच्छेद को सही ठहराते हुए कोर्ट में कहा था कि ऐसा क़ानून ज़रूरी है ताकि लोगों को इंटरनेट पर आपत्तिजनक बयान देने से रोका जा सके. सरकार का कहना था कि आम जनता को इंटरनेट पर ज़रूरत से ज़्यादा आज़ादी देने से जनता में आक्रोश फैलने का ख़तरा है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर कुछ याचिकाओं में कहा गया था कि ये प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ हैं, जो हमारे संविधान के मुताबिक़ हर नागरिक का मौलिक अधिकार है| सुप्रीम कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट की धारा 66A को खत्म कर दिया है |
इस धारा के तहत पुलिस को ये अधिकार था कि वो इंटरनेट पर लिखी गई बात के आधार पर किसी को ग़िरफ्तार कर सकती है.
इस धारा के खत्म होने से इंटरनेट पर कुछ लिखने से जुड़े मामलों में अब तत्काल की जाने वाली ग़िरफ्तारी रुकेगी, जबकि धारा 66A में तुरंत ग़िरफ्तारी का प्रावधान था.
कोर्ट में ये याचिका दिल्ली की एक छात्रा श्रेया सिंघल ने साल 2012 में मुंबई की दो लड़कियों की ग़िरफ़्तारी के बाद दायर की थी.