बाल संसार

राजा ने भोगी कर्जदार किसान की सजा

आज के लोकतांत्रिक युग के शासक क्या अपनी प्रजा के दुख अपने ऊपर लेने को तैयार हैं ? प्राचीन भारत में उज्जैन के लोकप्रिय शासक राजा विक्रमादित्य ऐसे थे, जो साहूकार का कर्ज न चुका पाने वाले किसान की 20 कोड़ों की सजा स्वंय भुगतने को तैयार हो गये।
हिन्दी कथा साहित्य में उपदेशात्मक, ज्ञानवद्र्वक और शिक्षाप्रद कथाओं की भरमार है। कथा सरित सागर, जातक कथाओं, सिंहासन बत्तीसी, बेताल पच्चीसी, और पंच तंत्र की कथायें सैकड़ों-हजारों वर्ष बाद भी उतनी ही प्रसंगिक हैं, जितनी वह उस युग में थीं। यह कथायें समाज और शासकों को अच्छे आचरण का सबक आज भी सिखाती हैं।
राजा भोज जब विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने के लिये आगे बढ़ा, तो सिंहासन से रतिबाला नाम की एक पुतली बाहर निकल कर बोली, राजन क्या तुमने संकट में पड़े किसी व्यकित के लिये अपने प्राण संकट में डाले हैं ? यदि नहीं, तो तुम विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने के अधिकारी नहीं हो। विक्रमादित्य की एक कथा सुनाते हुये पुतली बोली।
एक बार राज्य में सूखा पड़ा। प्रजा के संकट में राज्य ने बहुत मदद की फिर भी एक किसान को साहूकार से कर्ज लेना पड़ा। समय पर कर्ज न चुकाने की सजा के तौर पर पंचायत ने दूसरे दिन सुबह किसान को 20 कोड़े मारने की दे दी। विक्रमादित्य रात में वेश बदल कर प्रजा का हाल-चाल लेने अक्सर निकलता था। उस दिन भी वह निकला तो एक घर से एक महिला के रोने की आवाज सुन कर वह रूक गया।
विक्रमादित्य ने घर जाकर महिला से रोने का कारण पूछा। महिला के बताने पर राजा ने कहा चिंता मत करो। तुम्हारे पति को सजा नहीं मिलेगी। वेश बदले हुये राजा सुबह पंचायत के सजा स्थल पर पहुंच गया और किसान के बदले स्वंय सजा भोगने के लिये प्रस्तुत कर दिया। नियम के अनुसार पंचायत ने इसकी अनुमति दे दी, जब राजा ने कोड़े खाने के लिये कपड़े उतारे, तो पंचायत के लोगों ने गले में पड़े राज चिन्ह वाले हार से पहचान लिया कि यह तो राजा विक्रमादित्य हैं!
पंचायत और साहूकार राजा से माफी मांगने लगे। विक्रमादित्य ने कहा आप नियम के अनुसार मुझे सजा दीजिए। साहूकार हाथ जोड़ कर आगे आया, महाराज मैं किसान का कर्ज माफ करता हूं। राजा ने कहा मैं तुम्हारा कर्ज अपने निजी कोष से चुकता कर दूंगा, तुम कसान को ऋण मुक्त कर दो।
पुतली ने राजा भोज से कहा, यदि तुमने जीवन में कभी किसी के लिए इतना त्याग किया हो, तो तुम इस सिंहासन पर बैठने के अधिकारी हो ? इतना कह कर वह गायब हो गयी। आज जब राजतंत्र नही, बलिक लोकतंत्र है और सब लोग बराबर हैं, तो कोर्इ ऐसा मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री है, जो ऐसा साहस करे ? जबकि प्रतिवर्ष हजारों किसान कर्ज में डूब कर आत्महत्या कर लेते हैं।

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